Friday, December 19, 2008

Child Labor
दिल मैं अरमां कितने है,
पर रस्ते का कोई ठिकाना नहीं..

सपने वोह देखते है जिनकी जेबे खनकती है,
दिन रात पिसते रहते है हम,
हमारा नींद से कोई वास्ता ही नहीं..

ज़िन्दगी की खवाहिश है मुझे,
पर कोई रास्ता दिखाई देता नहीं मुझे,

जेब अपनी भरू, या पड़ लिख के कुछ बनू?
क्या करू कुछ भी समझ आता नहीं मुझे..

सपने देखते है वोह अपने आगे बड़ने के,
लेकिन भूखे पेट नींद भी आती नहीं मुझे..

No comments: